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चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य): गुप्त साम्राज्य का स्वर्णिम युग

परिचय

चंद्रगुप्त द्वितीय, जिन्हें विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है, गुप्त साम्राज्य के महान सम्राटों में से एक थे। उनका शासनकाल भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है, जिसमें कला, साहित्य, विज्ञान और संस्कृति का अभूतपूर्व विकास हुआ।

प्रारंभिक जीवन और परिवार

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चंद्रगुप्त द्वितीय का जन्म सम्राट समुद्रगुप्त और रानी दत्तादेवी के पुत्र के रूप में हुआ था। उनके दादा चंद्रगुप्त प्रथम ने गुप्त वंश की नींव रखी थी। चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपने बड़े भाई रामगुप्त को हटाकर सत्ता संभाली, जैसा कि विशाखदत्त के नाटक ‘देवीचंद्रगुप्तम्’ में वर्णित है।

शासनकाल (लगभग 380–415 ई.)

शासनकाल(लगभग 380–415 ई.)

चंद्रगुप्त द्वितीय का शासनकाल गुप्त साम्राज्य के उत्कर्ष का समय था। उन्होंने अपने पिता समुद्रगुप्त की विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ाया और साम्राज्य को पश्चिम में अरब सागर से पूर्व में बंगाल तक, उत्तर में हिमालय से दक्षिण में नर्मदा नदी तक विस्तारित किया।

सैन्य विजय और विस्तार

सैन्यविजय_और_विस्तार
  • शकों की पराजय: चंद्रगुप्त द्वितीय ने पश्चिमी क्षत्रपों (शकों) को हराकर मालवा, गुजरात और सौराष्ट्र पर अधिकार किया।
  • वाकाटक संघटन: उन्होंने अपनी पुत्री प्रभावतीगुप्त का विवाह वाकाटक राजा रुद्रसेन द्वितीय से किया, जिससे दक्षिण भारत में गुप्त प्रभाव बढ़ा।

प्रशासन और अर्थव्यवस्था

प्रशासन_और_अर्थव्यवस्था

चंद्रगुप्त द्वितीय ने एक मजबूत प्रशासनिक प्रणाली स्थापित की। उन्होंने स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा दिया और व्यापार को प्रोत्साहित किया। उनके शासन में सोने और चांदी की मुद्राएं प्रचलित थीं, जिन पर देवी लक्ष्मी की छवि अंकित होती थी।

कला, साहित्य और संस्कृति

चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में महान कवि कालिदास, खगोलशास्त्री वराहमिहिर और अन्य विद्वान शामिल थे। इस काल में ‘मेघदूत’, ‘अभिज्ञानशाकुंतलम्’ जैसी कृतियों की रचना हुई। दिल्ली का लौह स्तंभ, जो उनकी विजय का प्रतीक है, इसी काल का है।

धर्म और समाज

हालांकि चंद्रगुप्त द्वितीय स्वयं वैष्णव थे, उन्होंने बौद्ध और जैन धर्मों को भी संरक्षण दिया। चीनी यात्री फाह्यान ने उनके शासनकाल में भारत की समृद्धि और धार्मिक सहिष्णुता का वर्णन किया है।

उत्तराधिकारी और विरासत

चंद्रगुप्त द्वितीय के बाद उनके पुत्र कुमारगुप्त प्रथम ने सत्ता संभाली। चंद्रगुप्त द्वितीय का शासनकाल गुप्त साम्राज्य का स्वर्णिम युग था, जिसने भारतीय इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी।

निष्कर्ष

चंद्रगुप्त द्वितीय का शासनकाल भारतीय इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है। उनकी सैन्य विजय, प्रशासनिक दक्षता, सांस्कृतिक संरक्षण और धार्मिक सहिष्णुता ने गुप्त साम्राज्य को महानता की ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

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